आदरणीय अध्यक्ष महोदय, मंच पर उपस्थित समस्त सम्मानित
महानुभाव, दूर दूर से पधारे न्याति बन्धुओ, देवियों और सज्जनों !
मैं ओमप्रकाश जेठमल छूंछा आप सभी का इस विराट अवसर पर
हार्दिक स्वागत करता हूँ एवम आत्मिक अभिनन्दन करता हूँ .
ब्रह्मक्षत्रिय संपर्क समाज मुंबई द्वारा आयोजित इस मेगा सामूहिक
विवाहोत्सव के भव्य मंच पर समाज की ओर से आपने जो दिव्य
और भव्य सम्मान मुझे प्रदान किया है सबसे पहले मैं उसके लिए
ब्रह्मक्ष्त्रिय संपर्क समाज मुंबई को धन्यवाद देता हूँ और विश्वास
दिलाता हूँ कि इस सम्मान के गौरव और गरिमा को सतत बनाए
रखूँगा .
प्यारे स्वजनों ! चूँकि व्यापार के साथ साथ विभिन्न सामाजिक
संगठनों के माध्यम से लगातार समाज की सेवा में तन मन धन
से सक्रिय रहता हूँ इसलिए आये दिन कहीं न कहीं सम्मान मिलते
ही रहते हैं परन्तु यह सम्मान उन सबसे ऊँचा और अधिक
गरिमापूर्ण है क्योंकि यह सम्मान मेरे अपने समाज ने या यों कहो
कि मेरे बड़े परिवार ने मुझे प्रदान किया है . इसलिए इस सम्मान पर
अगर मैं अपने सारे सम्मान भी न्योछावर कर दूँ तो भी कोई
अतिश्योक्ति नहीं होगी .
सम्माननीय न्याति बन्धुओ, बड़ा सुख मिलता है जब आप में से कोई
हिंगलाज भक्त गढ़ सिवाना से फोन करके धन्यवाद देता है और कहता है
कि वाह ओम जी वाह, आपने गढ़ सिवाना में संगमरमर की नई सरलगामी
सीढियाँ बना कर और सीढियों पर शेड्स लगवा कर यात्रा सरल कर दी क्योंकि
पहले बड़ी कठिनाई होती थी . इसी प्रकार बड़ा आनंद अनुभव होता है
जब राजस्थान से कोई फोन करके कहता है कि धन्यवाद ओम जी आपने अपने
कैम्प में पशुओं की चिकित्सा करा कर हमारी गायों और बैलों के प्राण बचा
लिए . मैं आपको बता नहीं सकता मित्रो ! कि कितना सुकून मिलता है उस
वक्त जब गाँव गुड़ा बालोताण में मेरे द्वारा स्थापित में बच्चे शिक्षा पाते
हैं अथवा गाँव के प्रवेश द्वार हिंगलाज द्वार से गुज़रते हुए कुलदेवी माँ
हिंगलाज का स्मरण करते हैं . वो चाहे जोधपुर और अन्य स्थानों पर बनाए गए
शमसान स्थल हों या श्रीकृष्ण मंदिर का जीर्णोद्धार हो, जालोर के बाबा
रामदेव मंदिर में निर्माण सहयोग हो या केरला जैसी दक्षिण भारतीय
भूमि पर कोचीन में बाबा रामदेवजी के मंदिर का निर्माण हो . मुझे सब
कामों में आनंद आता है इसलिए मैं ये करता रहा हूँ और आगे भी करता रहूँगा .
गीता में भगवान् श्रीकृष्ण ने धन के बारे में साफ साफ कहा है कि धन
के तीन ही उपयोग हैं दान, भोग अथवा नाश ...........इसी के साथ यह भी
कहा है इनमे सबसे श्रेष्ठ उपयोग दान है . तो मित्रो गीता के सन्देश को
शिरोधार्य करना चाहिए .....और जहाँ तक हो सके दान करते रहना
चाहिए , इसी के साथ स्वयं भोग भी करना चाहिए धन का, क्योंकि
परमात्मा ने हमें इस योग्य समझ कर ही भेंट किया है . हम धन का उपयोग
नहीं करेंगे तो तीसरी और आखरी गति धन की नाश है ......जो कोई भी
समझदार व्यक्ति नहीं चाहेगा
बस यही मेरा फलसफा है और यही मेरा संदेश है कि जियो तो जी भर
के जियो, ...........जीवन का हर सुख भोगो लेकिन अपनी आमदनी का
एक हिस्सा दान ज़रूर करो
आपने मुझे समय दिया और मेरी बात सुनी इसके लिए मैं आप सभी का
हार्दिक आभारी हूँ .
धन्यवाद
जय माँ हिंगलाज
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जय हिंगुलाज